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ग़ज़ल
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
वो शहर में था तो उस के लिए औरों से भी मिलना पड़ता था
अब ऐसे-वैसे लोगों के मैं नाज़ उठाऊँ किस के लिए
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
मिरी दास्ताँ का उरूज था तिरी नर्म पलकों की छाँव में
मिरे साथ था तुझे जागना तिरी आँख कैसे झपक गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
किन राहों से सफ़र है आसाँ कौन सा रस्ता मुश्किल है
हम भी जब थक कर बैठेंगे औरों को समझाएँगे
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं
कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
सहरा की मुँह-ज़ोर हवाएँ औरों से मंसूब हुईं
मुफ़्त में हम आवारा ठहरे मुफ़्त में घर वीरान हुआ