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ग़ज़ल
बुतान-ए-महविश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं
कि जिस की जान जाती है उसी के दिल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
प्रेम पुजारी दिल को मेरे तोहफ़ा ये अनमोल दिया
उस ने चाहत के प्याले में विश नफ़रत का घोल दिया
सलीम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जो अमृत छोड़ कर हम लोग भी विश-पान कर लेते
तो अपने ख़ून में ये साँप लहराया नहीं होता