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ग़ज़ल
पीत में ऐसे लाख जतन हैं लेकिन इक दिन सब नाकाम
आप जहाँ में रुस्वा होगे वाज़ हमें फ़रमाते हो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जाने क्या वज़्अ है अब रस्म-ए-वफ़ा की ऐ दिल
वज़-ए-देरीना पे इसरार करूँ या न करूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
नहीं शराब से रंगीं तो ग़र्क़-ए-ख़ूँ हैं कि हम
ख़याल-ए-वज़्-ए-क़मीस-ओ-लिबादा रखते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
हुजूम-ए-दहर में बदली न हम से वज़-ए-ख़िराम
गिरी कुलाह हम अपने ही बाँकपन में रहे
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
मु'आफ़ कर मिरी मस्ती ख़ुदा-ए-अज़्ज़ा-व-जल
कि मेरे हाथ में साग़र है मेरे लब पे ग़ज़ल
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ज़ख़्म मिलते हैं इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल मिलता नहीं
वज़-ए-क़ातिल रह गई रस्म-ए-मसीहाई गई
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
मजलिस-ए-वाज़ में क्या मेरी ज़रूरत नासेह
घर में बैठा हुआ शुग़ल-ए-मय-ओ-मीना न करूँ