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ग़ज़ल
देखता हूँ मैं वाक़िआत सिलसिला-ए-तग़ैय्युरात
सदियों से वस्त में बना शहर का रास्ता हूँ मैं
क़ासिम याक़ूब
ग़ज़ल
तुझ से बिछड़ के चलता रहूँ राह पर रवाँ
दरिया का ऐन वस्त हो लेकिन भँवर न हो
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
ग़ज़ल
वो जो वस्त-ए-सीना में है वो फ़ज़ा नहीं कहीं भी
वहाँ मौसम और कुछ है जहाँ ख़त्त-ए-इस्तवा है