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ग़ज़ल
वाँ वो ग़ुरूर-ए-इज्ज़-ओ-नाज़ याँ ये हिजाब-ए-पास-ए-वज़अ
राह में हम मिलें कहाँ बज़्म में वो बुलाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वाँ दिल में कि सदमे दो याँ जी में कि सब सह लो
उन का भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
छोड़ना घर का हमें याद है 'जालिब' नहीं भूले
था वतन ज़ेहन में अपने कोई ज़िंदाँ तो नहीं था
हबीब जालिब
ग़ज़ल
सबा से करते हैं ग़ुर्बत-नसीब ज़िक्र-ए-वतन
तो चश्म-ए-सुब्ह में आँसू उभरने लगते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
इन परी-ज़ादों से लेंगे ख़ुल्द में हम इंतिक़ाम
क़ुदरत-ए-हक़ से यही हूरें अगर वाँ हो गईं