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ग़ज़ल
ये सर्दियों का उदास मौसम कि धड़कनें बर्फ़ हो गई हैं
जब उन की यख़-बस्तगी परखना तमाज़तें भी शुमार करना
नोशी गिलानी
ग़ज़ल
तेज़ नहीं गर आँच बदन की जम जाओगे रस्ते में
उस बस्ती को जाने वाली पगडंडी यख़-बस्ता है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
ज़मीं यख़-बस्ता हो जाती है जब जाड़ों की रातों में
मैं अपने दिल को सुलगाता हूँ अँगारे बनाता हूँ
सलीम अहमद
ग़ज़ल
मुंजमिद सज्दों की यख़-बस्ता मुनाजातों की ख़ैर
आग के नज़दीक ले आई है पेशानी मुझे
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
ये मंतिक़ कौन समझेगा कि यख़-कमरे की ठंडक में
मिरे अल्फ़ाज़ के मल्बूस शो'ला-बार कैसे हैं
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
ख़ंजरों की साज़िश पर कब तलक ये ख़ामोशी
रूह क्यूँ है यख़-बस्ता नग़्मा बे-ज़बाँ क्यूँ है
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
कहाँ मिलती है वो राहत नए यख़-बस्ता चेहरों में
पुराने दोस्तों से मिल के जो तस्कीन होती है
जमील मलिक
ग़ज़ल
वादे यख़-बस्ता कमरों के अंदर गिरते हैं
मेरे सेहन में झुलसे हुए कबूतर गिरते हैं
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
तन्नुर-ए-यख़ में ठिठुरते हैं ख़्वाब ओ ख़ूँ उस के
लिखा है नाम सर-ए-लौह-ए-रफ़्तगाँ उस का