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ग़ज़ल
फ़िक्र-ए-नाला में गोया हल्क़ा हूँ ज़े-सर-ता-पा
उज़्व उज़्व जूँ ज़ंजीर यक-दिल-ए-सदा पाया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
यक-ब-यक घबरा के जितनी दूर हट आता हूँ मैं
और भी उस शोख़ को नज़दीक-तर पाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
कहें हैं सब्र किस को आह नंग ओ नाम है क्या शय
ग़रज़ रो पीट कर उन सब को हम यक बार बैठे हैं