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ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
हुस्न-ए-सूरत की तरह हुस्न-ए-सुख़न है कम-याब
एक होती है हज़ारों में तबी'अत अच्छी
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ना-गहाँ इस रंग से ख़ूनाबा टपकाने लगा
दिल कि ज़ौक़-ए-काविश-ए-नाख़ुन से लज़्ज़त-याब था
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
फिर भटकता फिर रहा है कोई बुर्ज-ए-दिल के पास
किस को ऐ चश्म-ए-सितारा-याब वापस कर दिया
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
वो सरख़ुशी दे कि ज़िंदगी को शबाब से बहर-याब कर दे
मिरे ख़यालों में रंग भर दे मिरे लहू को शराब कर दे
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
ख़ुद-कलामी के भँवर में डूबती परछाईं बन कर रह गए हैं
इस अँधेरी रात में घर से निकलते तो सितारा-याब होते
सरवत हुसैन
ग़ज़ल
कुछ कम नहीं हों लज़्ज़त-ए-फ़ुर्क़त से फ़ैज़-याब
हासिल अगर विसाल नहीं है तो क्या हुआ