aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम ".zami"
पड़ी रहने दो इंसानों की लाशेंज़मीं का बोझ हल्का क्यों करें हम
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलताकहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता
ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मींपाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
सब उसी के हैं हवा ख़ुशबू ज़मीन ओ आसमाँमैं जहाँ भी जाऊँगा उस को पता हो जाएगा
जो मैं सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदातिरा दिल तो है सनम-आश्ना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में
कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिएदो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
ऐ मिरी गुल-ज़मीं तुझे चाह थी इक किताब कीअहल-ए-किताब ने मगर क्या तिरा हाल कर दिया
मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलतानई ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता
क्या मिल गया ज़मीर-ए-हुनर बेच कर मुझेइतना कि सिर्फ़ काम चलाता रहा हूँ मैं
परों को खोल ज़माना उड़ान देखता हैज़मीं पे बैठ के क्या आसमान देखता है
महलों में हम ने कितने सितारे सजा दिएलेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया
न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिएजहाँ है तेरे लिए तू नहीं जहाँ के लिए
यार भी राह की दीवार समझते हैं मुझेमैं समझता था मिरे यार समझते हैं मुझे
पुकारती हैं फ़ुर्सतें कहाँ गईं वो सोहबतेंज़मीं निगल गई उन्हें कि आसमान खा गया
महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों सेख़ुदा किसी की मोहब्बत पे मुस्कुराया है
ये आप हम तो बोझ हैं ज़मीन काज़मीं का बोझ उठाने वाले क्या हुए
मैं लाख कह दूँ कि आकाश हूँ ज़मीं हूँ मैंमगर उसे तो ख़बर है कि कुछ नहीं हूँ मैं
कहिए तो आसमाँ को ज़मीं पर उतार लाएँमुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए
तू आसमान की सूरत है गर पड़ेगा कभीज़मीं हूँ मैं भी मगर तुझ को आसरा दूँगा
फिर दिया पारा-ए-जिगर ने सवालएक फ़रियाद ओ आह-ओ-ज़ारी है
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