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ग़ज़ल
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
कोह-शिगाफ़ तेरी ज़र्ब तुझ से कुशाद-ए-शर्क़-ओ-ग़र्ब
तेग़-ए-हिलाल की तरह ऐश-ए-नियाम से गुज़र
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दिल-ए-संगीन-ए-ख़ुसरव पर भी ज़र्ब ऐ कोहकन पहुँची
अगर तेशा सर-ए-कोहसार पर मारा तो क्या मारा
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
दिल-ए-बेदार पैदा कर कि दिल ख़्वाबीदा है जब तक
न तेरी ज़र्ब है कारी न मेरी ज़र्ब है कारी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
वही नक़्स है वही खोट है वही ज़र्ब है वही चोट है
वही सूद है वही फ़ाएदा तुम्हें याद हो कि न याद हो
इस्माइल मेरठी
ग़ज़ल
शब में दिन का बोझ उठाया दिन में शब-बेदारी की
दिल पर दिल की ज़र्ब लगाई एक मोहब्बत जारी की
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
ग़ज़ल
सैल-ए-रंग आ ही रहेगा मगर ऐ किश्त-ए-चमन
ज़र्ब-ए-मौसम तो पड़ी बंद-ए-बहाराँ तो खुला
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
कैसे तेशा-ओ-तेग़ बनाते कैसे ज़र्ब लगाते लोग
हथकड़ियाँ थीं सब के हाथों में जब लोहा गर्म हुआ