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ग़ज़ल
फ़ितरत-ए-हुस्न में अगर अहलियत-ए-वफ़ा नहीं
मुझ को ख़ुदा से है गिला आप से कुछ गिला नहीं
राजेन्द्र बहादुर माैज
ग़ज़ल
आँसू को गुल नाब समझ कर नूर उजाला करते थे
रात की रात में दो तारों का चाँद बनाया करते थे
अरसलान राठोर
ग़ज़ल
हंगामा बपा हश्र का ऐ दोस्तो जब हो
साक़ी-ए-गुल-अंदाम हो और बिन्त-ए-इनब हो