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ग़ज़ल
ढोर डंगर और पँख पखेरू हज़रत-ए-इंसाँ काठ कबाड़
इक सैलाब में बहते बहते सब का संगम होने लगा
अब्दुल हमीद
ग़ज़ल
लुत्फुल्लाह खां नज़्मी
ग़ज़ल
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
गो दावा-ए-तक़्वा नहीं दरगाह-ए-ख़ुदा में
बुत जिस से हों ख़ुश ऐसा गुनहगार नहीं हूँ
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
वफ़ा-ए-वादा नहीं वादा-ए-दिगर भी नहीं
वो मुझ से रूठे तो थे लेकिन इस क़दर भी नहीं