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ग़ज़ल
जिस्म का जादू इस दुनिया में सर चढ़ कर जब बोलता है
रूह मिरी शर्मिंदा हो कर अपना चेहरा ढाँपती है
शबनम शकील
ग़ज़ल
जिस दिन वो मिलने आई है उस दिन की रूदाद ये है
उस का बलाउज़ नारंजी था उस की सारी धानी थी