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ग़ज़ल
डुबोएगी बुतो ये जिस्म दरिया-बार पानी में
बनेगी मौज भी मेरे लिए ज़ुन्नार पानी में
हातिम अली मेहर
ग़ज़ल
घबराएँ हवादिस से क्या हम जीने के सहारे निकलेंगे
डूबेगा अगर ये सूरज भी तो चाँद सितारे निकलेंगे
अलीम मसरूर
ग़ज़ल
मुझे इस दिल के ज़िंदाँ से है बेहतर आँख का दरिया
डुबोएगा ये पानी गर तो लाशें भी उछालेगा
फ़ौज़िया शेख़
ग़ज़ल
फ़रमाते हैं हँस हँस के मुझे देख के गिर्यां
ले डूबेगी आख़िर तुम्हें बरसात तुम्हारी