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ग़ज़ल
डूबने वाले की मय्यत पर लाखों रोने वाले हैं
फूट फूट कर जो रोते हैं वही डुबोने वाले हैं
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
जहाँ थे मुत्तफ़िक़ सब अपने बेगाने डुबोने को
उसी साहिल पे आज अपनी अना की सीपियाँ रोलें
ख़ालिद शरीफ़
ग़ज़ल
आँखें ख़ुदा ने बख़्शी हैं रोने के वास्ते
दो कश्तियाँ मिली हैं डुबोने के वास्ते