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ग़ज़ल
आप क्यूँ बैठे हैं ग़ुस्से में मिरी जान भरे
ये तो फ़रमाइए क्या ज़ुल्फ़ ने कुछ कान भरे
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
हँस के तड़पा दे मगर ग़ुस्से से सूरत न बिगाड़
ये भी मा'लूम है ज़ालिम तुझे हम देखते हैं
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
बड़े ही ग़ुस्से में ये कह के उस ने वस्ल किया
मुझे तो तुम से कोई बात ही नहीं करनी
स्वप्निल तिवारी
ग़ज़ल
ग़ुस्से में जो दी गाली मुँह चूम लिया मैं ने
ज़ालिम ने कहा ये क्या मैं ने कहा जुर्माना
आग़ा हश्र काश्मीरी
ग़ज़ल
कैसे कैसे मुझे बे-साख़्ता मिलते हैं ख़िताब
ग़ुस्सा आता है तो क्या क्या वो कहा करते हैं
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
'सफ़ी' को मुस्कुरा कर देख लो ग़ुस्से से क्या हासिल
उसे तुम ज़हर क्यों देते हो जो मरता है शक्कर से
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
अगर हूँ ग़ुस्से में फिर भी मैं चाहता ये हूँ
मैं सिर्फ़ हिज्र कहूँ और फ़ोन कट जाए
बालमोहन पांडेय
ग़ज़ल
कभी तुम धूल उड़ाते हो मिरी ग़ुस्से सीं रूखे हो
कभी मुँह पर हया का ला अरक़ छिड़काव करते हो
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
जो रोका राह में हुर ने तो शह अब्बास से बोले
मिरे भाई न ग़ुस्से में कहीं हद से गुज़र जाना