aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "KHaar-daar"
मसहूर हो रहे हैं वो सुन कर मिरा कलामदम उन पे जैसे कोई फ़ुसूँ कर रहा हूँ मैं
बारयाबी दर-ए-जानाँ पे अलग बात है 'ख़ार'क्या क़यामत है कि उस कूचे में जा भी न सकूँ
जिस रहगुज़र से गुज़रे वही ख़ार-दार थीये ज़िंदगी सुकून का इक इंतिज़ार थी
चला तो चलता गया इक जुनून मंज़िल मेंअगरचे रास्ता पुर-संग-ओ-ख़ार-दार आया
नोक-ए-मिज़्गाँ की है ख़लिश पुर-कैफ़नर्गिस-ए-ख़ार-दार के सदक़े
वो जानता था हसीं उँगलियों की ज़हराबीइसी लिए तो गुल-ए-ख़ार-दार था वो शख़्स
वक़्त के ख़ार-दार जंगल मेंहम ने बाँधी मचान लम्हों की
मुश्किलें थीं सफ़र में पहले भीरास्ता इतना ख़ार-दार न था
दामन-ए-यार उस से उलझेगाहो न गुलशन में ख़ार-दार दरख़्त
वो पौदे जिन के सरापे बड़े मुलाएम थेहमारे देखते लम्हों में ख़ार-दार हुए
ख़ून-ए-दिल दे के जिन को सींचा थानख़्ल सब ख़ार-दार निकले हैं
भटक रहा हूँ अभी ख़ार-दार सहरा मेंमगर मिज़ाज-ए-गुलिस्ताँ से रू-शनास हूँ मैं
वो खेत खेत रहीं जिन की ख़ार-दार सफ़ेंउन्ही में फूल थे दो चार फूल क्या करते
लगते हैं ख़ार-दार दरख़्तों पे फल मगरलगता है फल भी वैसा कि जैसा ख़मीर हो
फूलों की जुस्तुजू में हथेली है तार-तारदुनिया हो जैसे दश्त में इक ख़ार-दार पेड़
फूलों की जुस्तुजू में हथेली है तार तारदुनिया हो जैसे दश्त में इक ख़ार-दार पेड़
जिसे भी देखिए तर है वो ख़ून में 'दानिश'ये सारी बस्ती हमें ख़ार-दार लगती है
गुलाब खिलते हैं सीने में मेरे शे'रों केसो शाख़-ए-गुल की तरह से ही ख़ार-दार हूँ मैं
घने बरगदों की लताफ़तों पे ज़वाबितों की फ़सील थीमिरा ज़ख़्म जिस पे था मुन्कशिफ़ कोई ख़ार-दार बबूल था
वफ़ा के फूल खिलें ख़ार-दार शाख़ों परकिसी के लब पे न जौर-ओ-जफ़ा का नाम आए
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