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ग़ज़ल
मिरी बेताबियाँ भी जुज़्व हैं इक मेरी हस्ती की
ये ज़ाहिर है कि मौजें ख़ारिज अज़ दरिया नहीं होतीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
इम्कान से ख़ारिज है कि हूँ तुझ से मुख़ातिब
हमनाम को भी तेरे पुकारा न करेंगे
शैख़ अली बख़्श बीमार
ग़ज़ल
ज़ात सिफ़ात से आरी हो तो कैसा तआ'वुन ख़ारिज का
आँख तो थी ना-बीना नाहक़ सूरज का एहसान लिया
सय्यद नसीर शाह
ग़ज़ल
मज़हब-ए-इश्क़ से मंसूब ये बातें तो ख़ारिज की हैं
शाम-ए-हिज्राँ मैं किसी तौर मैं शिरकत नहीं करने वाला
रफ़ी रज़ा
ग़ज़ल
मज़ाहिर इस के क्यूँ मुतलक़-पने सूँ होवेंगे ख़ारिज
यू सूरत ग़ौर सूँ तो देक आईने में हासिल है
क़ुर्बी वेलोरी
ग़ज़ल
हर्फ़-ए-साकित बन गया तक़्तीअ' से ख़ारिज हुआ
इस ग़ज़ल की बज़्म से मुझ को निहाँ होना ही था
अजीत सिंह हसरत
ग़ज़ल
मिरी फ़िहरिस्त से एक नाम भी ख़ारिज नहीं होता
न जाने कौन किन हालात में बेहतर निकल आए