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ग़ज़ल
ख़द्द-ओ-ख़ाल-ए-हसरत-ओ-अरमाँ बदलना है मुझे
सरहद-ए-सोज़-ए-ग़म-ए-दिल से निकलना है मुझे
जगदीश मेहता दर्द
ग़ज़ल
चेहरे के ख़द-ओ-ख़ाल में आईने जड़े हैं
हम 'उम्र-ए-गुरेज़ाँ के मुक़ाबिल में खड़े हैं
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
किसी के नाम रुत्बा और न ख़द्द-ओ-ख़ाल से मतलब
किरामन कातिबीं को ख़ल्क़ के आ'माल से मतलब