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ग़ज़ल
शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था
शोला-ए-जव्वाला हर यक हल्क़ा-ए-गिर्दाब था
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
न होगा सोज़-ए-दिल शायद किसी सूरत भी कम मेरा
मुझे आज़ाद कर अब ज़िंदगी घुटता है दम मेरा
यासिर रामपूरी
ग़ज़ल
सोज़-ए-दिल का ज़िक्र अपने मुँह पे जब लाते हैं हम
शम्अ साँ अपनी ज़बाँ से आप जल जाते हैं हम
मीर हसन
ग़ज़ल
सर-फिरे करने लगे हैं जज़्ब सोज़-ए-दिल की बात
अब ख़ुदा रक्खे तो रक्खे आप की महफ़िल की बात
नाज़िश प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
'इश्क़' परवाने के मातम में वो अपने बाल खोल
सोज़-ए-दिल से आह क्या रोने में भर जाती है शम्अ
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
इक सम्त दुनिया मुश्तइ'ल और इक तरफ़ है सोज़-ए-दिल
सदियों से जारी है ये पंजा-आज़माई मुस्तक़िल
औन अब्बास औन
ग़ज़ल
सोज़-ए-दिल है ख़ामुशी से जल के बुझ जाने का नाम
ज़िंदगी है शम-ए-गुल के अश्क बरसाने का नाम