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ग़ज़ल
हम दिल को लिए हर देस फिरे इस जिंस के गाहक मिल न सके
ऐ बंजारो हम लोग चले हम को तो ख़सारा होता है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
नशा उतरा मगर अब भी तुम्हारी मस्त आँखों से
पिए थे जो मय-ए-उल्फ़त के साग़र याद आते हैं
ए. डी. अज़हर
ग़ज़ल
अल्फ़ाज़ कहाँ से लाऊँ छाले की टपक को समझाऊँ
इज़हार-ए-मोहब्बत करते हो एहसास-ए-मोहब्बत क्या जानो
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
न रहनुमा है न मंज़िल दयार-ए-उल्फ़त में
क़दम उठाते ही ख़िज़्र-ए-शिकस्ता-पा तो मिला
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
बात करने से भी नफ़रत हो गई दिलदार को
वाह-रे इज़हार-ए-उल्फ़त वाह-रे तासीर-ए-इश्क़