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ग़ज़ल
जुज़ दिल सुराग़-ए-दर्द ब-दिल-ख़ुफ़्तगाँ न पूछ
आईना अर्ज़ कर ख़त-ओ-ख़ाल-ए-बयाँ न पूछ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़द्द-ओ-ख़ाल-ए-हसरत-ओ-अरमाँ बदलना है मुझे
सरहद-ए-सोज़-ए-ग़म-ए-दिल से निकलना है मुझे
जगदीश मेहता दर्द
ग़ज़ल
हुज़ूर-ए-बुलबुल-ए-किल्क-ए-'बयाँ' किस तरह खुलते मुँह
कि बू-ए-ग़ुंचा साँ महजूब नुत्क़-ए-हर-सुख़न वाँ था
बयान मेरठी
ग़ज़ल
वक़्त ने छीने हैं जिन से ख़त्त-ओ-ख़ाल-ए-ज़िंदगी
डरते हैं जाते हुए वो आइनों के सामने
नसरीन सय्यद
ग़ज़ल
मुद्दई दर-पर्दा कट कट जाते हैं शक्ल-ए-नियाम
ऐ 'बयाँ' मेरी ज़बान-ए-तेज़ कहलाती है तेग़
बयान मेरठी
ग़ज़ल
नुक्ता-सरा थे क्या हुआ 'हावी' मियाँ तुम्हें
शेर-ओ-सुख़न को वक़्फ़-ए-ख़त-ओ-ख़ाल कर दिया
हावी मोमिन आबादी
ग़ज़ल
झुका दी क़ुदसियों ने बे-तकल्लुफ़ गर्दन-ए-ताअ'त
ज़हे-रुत्बा कफ़-ए-ख़ाक-ए-दर-ए-वाला-ए-दौलत का
बयान मेरठी
ग़ज़ल
कसरत से दाग़ हैं जो ग़म-ए-इश्क़-ए-ख़ाल में
तिल भर जगह नहीं है दिल-ए-पुर-मलाल में