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ग़ज़ल
किस तरह हुस्न-ए-ज़बाँ की हो तरक़्क़ी 'वहशत'
मैं अगर ख़िदमत-ए-उर्दू-ए-मुअ'ल्ला न करूँ
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
ख़ाक-ए-'शिबली' से ख़मीर अपना भी उट्ठा है 'फ़ज़ा'
नाम उर्दू का हुआ है इसी घर से ऊँचा
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
ख़िदमत-ए-उर्दू पेश-ए-नज़र है 'अहसन' का पेशा न समझ
अहल-ए-सुख़न में नाम है बे-शक लेकिन वो बदनाम नहीं
मुहम्मद हसन अहसन मालिगानवि
ग़ज़ल
हम को ख़याल-ए-ख़िदमत-ए-अह्ल-ए-जहाँ तो है
ताक़त नहीं है पाँव में मुँह में ज़बाँ तो है
मुसव्विर लखनवी
ग़ज़ल
दिल मिरा पेच-ओ-ख़म-ए-गेसू-ए-उर्दू का असीर
फ़न मिरा शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशान-ए-ग़ज़ल
अयाज़ आज़मी
ग़ज़ल
अगर आह-ए-रसा से काम हम ना-काम लेते हैं
फ़रिश्ते पाया-ए-अर्श-ए-मोअल्ला थाम लेते हैं
कैफ़ी काकोरवी
ग़ज़ल
लहू दे कर जिला बख़्शेंगे ऐ उर्दू ज़बाँ तुझ को
कभी मिटने नहीं देंगे ये तेरे पासबाँ तुझ को
इक़बाल सैफ़ी
ग़ज़ल
ख़याल-ए-ख़िदमत-ए-ख़ल्क़-ए-ख़ुदा दिया तू ने
मुझे हयात का मक़्सद बता दिया तू ने