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ग़ज़ल
क्या मिले दिल कि नज़र भी नहीं मिलती 'आमिर'
हुस्न ख़ुद-बीं-ओ-ख़ुद-आरा है ख़ुदा ख़ैर करे
आमिर मौसवी
ग़ज़ल
जान दी है दिल-ए-ख़ुद्दार ने किस मुश्किल से
आज बालीं पे वो ख़ुद-बीन-ओ-ख़ुद-आरा न हुआ
फ़ैज़ी निज़ाम पुरी
ग़ज़ल
हुस्न-ए-ख़ुद-बीन-ओ-ख़ुद-आरा है मिज़ाजन फिर भी
शाज़-ओ-नादिर ही वो खुलता है अगर खुलता है
सय्यद नवाब हैदर नक़वी राही
ग़ज़ल
ग़ज़ल का परतव नई ज़मीनों से जा मिला है
पता चला है सुख़न ख़ज़ीनों से जा मिला है
मन्नान क़दीर मन्नान
ग़ज़ल
क़ैद-ए-तन्हाई से क़ैद-ए-उम्र में आ जाऊँगा
फ़र्क़ इतना है कि खाना अपने घर का खाऊँगा