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ग़ज़ल
ख़ुश-क़िस्मत हैं वो जो गाँव में लम्बी तान के सोते हैं
हम तो शहर के शोर में शब-भर अपनी जान को रोते हैं
अफ़ज़ल परवेज़
ग़ज़ल
जिन्हें हासिल है तेरा क़ुर्ब ख़ुश-क़िस्मत सही लेकिन
तिरी हसरत लिए मर जाने वाले और होते हैं
हरी चंद अख़्तर
ग़ज़ल
सभी तारे फ़लक पर इतने ख़ुश-क़िस्मत नहीं होते
सिवा इक चाँद के नज़दीक जो तारा निकलता है
रियाज़ तारिक़
ग़ज़ल
पार उतरने वालों को अब दीवानों में गिनते हो
शायद ख़ुश-क़िस्मत थे वो जो डूब गए मंजधारों में
रशीद क़ैसरानी
ग़ज़ल
कुफ़्र का फ़तवा हुआ सादिर तो ख़ुश-क़िस्मत था मैं
तज़्किरा मेरा भी हर मस्जिद में ज़िमनन हो गया
काविश बद्री
ग़ज़ल
हम भी कितने ख़ुश-क़िस्मत हैं हमें तुम्हारे आँगन से
सूरज की ख़ैरात मिली तो काली रात भी साथ मिली
सोहन राही
ग़ज़ल
वो कितने ख़ुश-क़िस्मत थे जो अपने घरों को लौट गए
शहरों शहरों घूम रहे हैं हम हालात के मारे लोग
अज़रा नक़वी
ग़ज़ल
हर कसी को कब भला यूँ मुस्तरद करता हूँ मैं
तू है ख़ुश-क़िस्मत अगर तुझ से हसद करता हूँ मैं
इक़बाल साजिद
ग़ज़ल
मैं दीवाना सही लेकिन वो ख़ुश-क़िस्मत हूँ ऐ 'महशर'
कि दुनिया की ज़बाँ पर आ गया है आज नाम अपना
महशर इनायती
ग़ज़ल
सर पर ताज की सूरत धर दी उस ने ईंधन की गठरी
इश्क़ ने कैसे ख़ुश-क़िस्मत को शाह से लकड़हारा किया
सऊद उस्मानी
ग़ज़ल
एलिज़ाबेथ कुरियन मोना
ग़ज़ल
'ग़ुबार' अपनी हक़ीक़त कुछ नहीं है बज़्म-ए-हस्ती में
हूँ ख़ुश-क़िस्मत हबीब-ए-रब हुआ है चारागर अपना
ग़ुबार किरतपुरी
ग़ज़ल
ख़ुशा-क़िस्मत तुम्हें इस दिल में मेहमाँ कर दिया हम ने
तुम आए तो बयाबाँ को गुलिस्ताँ कर दिया हम ने
हसन नवाब हसन
ग़ज़ल
ख़ुशा-क़िस्मत वो आए हैं तो ऐसे में दुआ जागे
घटा बरसे उठे साग़र निज़ाम-ए-मय-कदा जागे
डॉ. फ़ौक़ करीमी
ग़ज़ल
क़िस्मत-ए-शब-ज़दगाँ जाग ही जाएगी 'अलीम'
जरस-ए-क़ाफ़िला-ए-ख़ुश-ख़बराँ हैं हम लोग