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ग़ज़ल
हर इक बे-कार सी हस्ती ब-रू-ए-कार हो जाए
जुनूँ की रूह-ए-ख़्वाबीदा अगर बेदार हो जाए
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
दिल-ए-बेदार पैदा कर कि दिल ख़्वाबीदा है जब तक
न तेरी ज़र्ब है कारी न मेरी ज़र्ब है कारी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
रह-ए-ख़्वाबीदा थी गर्दन-कश-ए-यक-दर्स-ए-आगाही
ज़मीं को सैली-ए-उस्ताद है नक़्श-ए-क़दम मेरा
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नर्गिस ओ गुल की खिली जाती हैं कलियाँ देखो सब
फिर भी उन ख़्वाबीदा फ़ित्नों को जगाती है बहार