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ग़ज़ल
सख़्ती-ए-ग़म सें मिरे दिल का लहू पानी हो
चश्म-ए-गिर्यां सती जारी है ख़ुदा ख़ैर करे
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
मिरा दिल लाला-रू के ग़म के रहने की हवेली है
जिगर दाग़ों सें ताऊसी गुलिस्तान-ए-गंधीली है
आरिफ़ुद्दीन आजिज़
ग़ज़ल
तुझ पर फ़िदा हैं सारे हुस्न-ओ-जमाल वाले
क्या साफ़ गाल वाले क्या ख़त्त-ओ-ख़ाल वाले
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
जलते हैं और हम सीं जब माँगते हो प्याला
होते हैं दाग़ दिल में जूँ जूँ कते हो ला ला