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ग़ज़ल
ख़िज़ाँ की रुत में गुलाब लहजा बना के रखना कमाल ये है
हवा की ज़द पे दिया जलाना जला के रखना कमाल ये है
मुबारक सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जो ख़ानदानी रईस हैं वो मिज़ाज रखते हैं नर्म अपना
तुम्हारा लहजा बता रहा है तुम्हारी दौलत नई नई है
शबीना अदीब
ग़ज़ल
कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ
वो ग़ज़ल का लहजा नया नया न कहा हुआ न सुना हुआ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
लफ़्ज़ों में जज़्ब हो गया सब ज़िंदगी का ज़हर
लहजा बचा है इस को ग़ज़ल की मिठास दे