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ग़ज़ल
हमारा नाम भी बारा-दरी पर नक़्श करना
ये सारी जालियाँ हम ने निगाहों से बुनी हैं
मोहम्मद इज़हारुल हक़
ग़ज़ल
कारवान-ए-दह्र को मंज़िल-ब-मंज़िल देख आए
'नाज़िश'-ए-बदनाम अपनी सुब्ह क्या और शाम क्या
नाज़िश सह्सहरामी
ग़ज़ल
कुछ वही समझेगा 'नाज़िश' आज के माहौल को
जिस को ज़िंदाँ पर यक़ीन-ए-गुल्सिताँ करना पड़े
नाज़िश प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
ख़िल्क़त-ए-कौनैन में क्या जिन ओ क्या इंसाँ 'नज़ीर'
वहशी ओ ताइर ज़बाँ ओ बे-ज़बाँ को इश्क़ है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मैं तुझ पर मुन्कशिफ़ हो जाऊँ ये मुझ पर गराँ है
ख़सारा सा ख़सारा ता-ब-इम्काँ सब ज़ियाँ है
अंजुम उसमान
ग़ज़ल
अज़ल से जो मुसलसल है रवाँ वो कारवाँ हम हैं
जो बदले दम-ब-दम ताहम है क़ाएम वो जहाँ हम हैं
सदा अम्बालवी
ग़ज़ल
रूह-ए-ज़माँ मकाँ मिले राज़-ए-अयाँ निहाँ मिले
कब से हूँ गर्म-ए-जुस्तुजू मंज़िल-ए-कुन-फ़काँ मिले
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
मिरा साथ दे जो तू 'इश्क़ में तो तिरी नवाज़िश-ए-बे-कराँ
मैं भटक गया तिरी राह से मुझे राहबर की तलाश है
बिसमिल देहलवी
ग़ज़ल
मिसाल-ए-नक़्श-ए-क़दम अपनी हैरतों में हूँ गुम
वो जा चुका है तो फिर इंतिज़ार करना क्या