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ग़ज़ल
दिलों में जब गुमाँ होंगे मकीं आहिस्ता आहिस्ता
तो धुँदला जाएगा नूर-ए-यकीं आहिस्ता आहिस्ता
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
रो चले चश्म से गिर्या की रियाज़त कर के
आँखें बे-नूर हैं यूसुफ़ की ज़ियारत कर के
अली अकबर नातिक़
ग़ज़ल
मुस्कुराती हुई आँखें थीं कि झिलमिल से चराग़
उस के जाते ही लगा चल दिए महफ़िल से चराग़
शीराज़ सागर
ग़ज़ल
तुझ बुत का हूँ मैं बरहमन कर्तार की सौगंद है
जपता हूँ माला यार की ज़ुन्नार की सौगंद है
उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला
ग़ज़ल
वो मिरा मौजों से लड़ लड़ कर उभर कर देखना
दोस्तों का दूर साहिल से समुंदर देखना