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ग़ज़ल
घरों की तर्बियत क्या आ गई टी-वी के हाथों में
कोई बच्चा अब अपने बाप के ऊपर नहीं जाता
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
अमरीका में टी-वी-चैनल चुपके से दर आए थे
चल निकले तो उर्दू के सब अख़बारों को मार दिया
खालिद इरफ़ान
ग़ज़ल
बोलने की भी यहाँ क़ीमत चुकाई जा रही है
दिन दहाड़े सच की अब गर्दन दबाई जा रही है
टी के सिंह काशिफ़
ग़ज़ल
न जाने पतली गली से वो कब निकल लेगा
नहीं है टी बी या बी पी मगर ज़ुकाम तो है