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ग़ज़ल
बहार का आज पहला दिन है चलो चमन में टहल के आएँ
फ़ज़ा में ख़ुशबू नई नई है गुलों में रंगत नई नई है
शबीना अदीब
ग़ज़ल
काबा-ए-मद्द-ए-नज़र क़िबला-नुमा है ता-हाल
कू-ए-जानाँ की तरफ़ दिल निगराँ है कि जो था
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
तअल्लुक़ है वही ता-हाल उन ज़ुल्फ़ों के सौदे से
सलासिल की गिरफ़्तारी जो आगे थी सो अब भी है
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
कोहरा ओढ़े टहल रही थी झील पे गहरी ख़ामोशी
फिर सूरज ने धूप बिछाई तब कुछ ठहरी ख़ामोशी