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ग़ज़ल
बताएँ क्या तुझे अब ख़स्ता-हाली-ए-दिल 'राज़'
शिकस्ता ख़्वाब के टुकड़ों पे पल रहा है दोस्त
इस्माईल राज़
ग़ज़ल
ज़र्रा ज़र्रा है मिरे कश्मीर का मेहमाँ-नवाज़
राह में पत्थर के टुकड़ों ने दिया पानी मुझे
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
एक शब के टुकड़ों के नाम मुख़्तलिफ़ रखे
जिस्म-ओ-रूह का बंधन सिलसिला है ख़्वाबों का
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
दस्त-ए-फ़ितरत के तराशे हुए दो-बर्ग-ए-गुलाब
दिल के टूटे हुए टुकड़ों को बनाए हुए होंट