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ग़ज़ल
अगर दिल को बचाता मैं न ज़ुल्फ़ों के अड़ंगे से
तो दुनिया भर से लम्बी शाम-ए-फ़ुर्क़त और हो जाती
बूम मेरठी
ग़ज़ल
अजय सहाब
ग़ज़ल
गिर के उस के कूचा-ए-तारीक में निकला न दिल
पेच-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार का मुझ को अड़ंगा हो गया