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ग़ज़ल
अगर छूटा भी उस से आइना-ख़ाना तो क्या होगा
वो उलझे ही रहेंगे ज़ुल्फ़ में शाना तो क्या होगा
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
मुरक़्क़ा' पहले अपना आइना-ख़ाने में रख देना
यही आईना-ख़ाना दिल के काशाने में रख देना
मोहम्मद उमर
ग़ज़ल
क्या हुई वो रौनक़-ए-आईना-ख़ाना क्या हुई
इक नज़र काफ़ी थी जिस के मुस्कुराने के लिए