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ग़ज़ल
जितने दुख थे जितनी उमीदें सब से बराबर काम लिया
मैं ने अपने आइंदा की इक तस्वीर बनाने में
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
किसे मा'लूम क्या होगा मआल आइंदा नस्लों का
जवाँ हो कर बुज़ुर्गों की रिवायत छोड़ दी हम ने
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
फ़हमीदा रियाज़
ग़ज़ल
हाल में अपने मगन हो फ़िक्र-ए-आइंदा न हो
ये उसी इंसान से मुमकिन है जो ज़िंदा न हो
सुरूर बाराबंकवी
ग़ज़ल
मैं हूँ वो लम्हा जो मुट्ठी में समा सकता नहीं
पल में हूँ इमरोज़-ओ-माज़ी पल में आइंदा हूँ मैं