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ग़ज़ल
उस के तो नाम से वाबस्ता है कलियों का गुदाज़
आँसुओ तुम से तो पत्थर भी पिघल जाते रहे
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल
ये ख़िज़ाँ की ज़र्द सी शाल में जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है उसे आँसुओं से हरा करो
बशीर बद्र
ग़ज़ल
आँसू तो बहुत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन
बंध जाए सो मोती है रह जाए सो दाना है