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ग़ज़ल
फ़स्ल-ए-गुल क्या कर गई आशुफ़्ता सामानों के साथ
हाथ हैं उलझे हुए अब तक गरेबानों के साथ
सुरूर बाराबंकवी
ग़ज़ल
चमन वालों को रक़्साँ-ओ-ग़ज़ल-ख़्वाँ ले के उट्ठी है
सबा इक इक से ताईद-ए-बहाराँ ले के उट्ठी है
सुरूर बाराबंकवी
ग़ज़ल
जान-ए-हुस्न और काएनात-ए-रंग-ओ-बू क्या चीज़ है
तेरी क़ुर्बत कह गई ऐ यार तू क्या चीज़ है