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ग़ज़ल
आब-ए-हयात जा के किसू ने पिया तो क्या
मानिंद-ए-ख़िज़्र जग में अकेला जिया तो क्या
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
समझा मैं ख़िज़्र-ए-चश्मा-ए-आब-ए-हयात हूँ
होंठों से मेरे उस ने जो अपने मिलाए होंठ