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ग़ज़ल
मैं जब हूँ आज सरशार-ए-मय-ए-जाम-ए-तन-आसानी
ये मुश्त-ए-ख़ाक ऐ 'ज़मज़म' हम-आहंग-ए-फ़ुग़ाँ क्यों हो
सूफ़ी ज़मज़म बिजनोरी
ग़ज़ल
जल्वा-ए-हुस्न-ए-जहाँ-ताब के परतव की क़सम
फिर हक़ीक़त से बदल तूर के अफ़्साने को
सूफ़ी ज़मज़म बिजनोरी
ग़ज़ल
शिकवा है किसी से न शिकायत न गिला है
ये ज़ीस्त मिरे जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा है
सूफ़ी ज़मज़म बिजनोरी
ग़ज़ल
आरज़ू कब कोई मोहताज-ए-बयाँ होती है
ख़ामुशी ख़ुद ही मोहब्बत की ज़बाँ होती है
सूफ़ी अय्यूब ज़मज़म
ग़ज़ल
बज़्म-ए-तख़य्युलात में मातम है इन दिनों
बे-कैफ़-ओ-बे-सुरूर सा 'आलम है इन दिनों
सूफ़ी अय्यूब ज़मज़म
ग़ज़ल
ज़ीस्त आग़ाज़ से इत्माम-ए-सफ़र होने तक
इक मुअ'म्मा ही रही उम्र बसर होने तक
सूफ़ी ज़मज़म बिजनोरी
ग़ज़ल
गुल-ओ-लाला तो हैं ऐ बाग़बाँ ख़ामोश तस्वीरें
चमन बेदार होता है फ़क़त शोर-ए-अनादिल से
सूफ़ी ज़मज़म बिजनोरी
ग़ज़ल
फिर उस के आरिज़-ओ-रुख़ पर फ़िदा होने का वक़्त आया
वफ़ा-ना-आश्ना से आश्ना होने का वक़्त आया
सूफ़ी ज़मज़म बिजनोरी
ग़ज़ल
सूद-ओ-ज़ियाँ की फ़िक्र से बेगाना बन के जी
जीने की आरज़ू है तो दीवाना बन के जी
सूफ़ी ज़मज़म बिजनोरी
ग़ज़ल
बे-वज्ह ये हंगाम-ए-बहाराँ तो नहीं है
कुछ साज़िश-ए-अर्बाब-ए-गुलिस्ताँ तो नहीं है
सूफ़ी अय्यूब ज़मज़म
ग़ज़ल
मआल-ए-ज़िंदगानी इम्बिसात-ए-अंजुमन भी है
मगर इस रहगुज़र में मंज़िल-ए-दार-ओ-रसन भी है
सूफ़ी अय्यूब ज़मज़म
ग़ज़ल
मंज़र-ए-सुब्ह-ए-बहाराँ नहीं देखा जाता
चाक-दामान-ए-गुलिस्ताँ नहीं देखा जाता
सूफ़ी ज़मज़म बिजनोरी
ग़ज़ल
जज़्बा-ए-इश्क़ में तासीर भी हो सकती है
हुस्न के पानों में ज़ंजीर भी हो सकती है
सूफ़ी अय्यूब ज़मज़म
ग़ज़ल
किसी 'अज़ीज़ को है इंतिज़ार ऐ 'ज़मज़म'
जवान ज़िंदगी है नज़्र-ए-हादसात न कर
मुकर्रम हुसैन आवान ज़मज़म
ग़ज़ल
बला का शोर-ओ-फ़ुग़ाँ है निहाँ ख़मोशी में
मैं खुल के सामने आया हूँ पर्दा-पोशी में