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ग़ज़ल
निगाह-ए-नाज़ का रिश्ता जो दिल के घाव से है
ये आब-ओ-रंग-ए-तमन्ना इसी लगाव से है
मोहम्मद नबी ख़ाँ जमाल सुवेदा
ग़ज़ल
क्या ज़ीस्त आब-ओ-रंग का धोका कहें जिसे
अहल-ए-निगाह ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा कहें जिसे
सय्यद सफ़दर हुसैन
ग़ज़ल
रक़्स-ए-शबाब-ओ-रंग-ए-बहाराँ नज़र में है
ये तुम नज़र में हो कि गुलिस्ताँ नज़र में है
राम कृष्ण मुज़्तर
ग़ज़ल
बहुत दुश्वार है तस्कीन-ए-ज़ौक़-ए-रंग-ओ-बू करना
जो चुन सकते हो काँटे तो गुलों की आरज़ू करना
अतहर ज़ियाई
ग़ज़ल
नज़र क्या ख़ाक मानूस-ए-जहान-ए-रंग-ओ-बू होगी
जो तुम होगे मिरे दिल में तो फिर क्या आरज़ू होगी
आशिक़ देहल्वी
ग़ज़ल
न भूलेगा ख़याल ओ रंग-ए-रुख़ का नामा-बर होना
हदीस-ए-शौक़ से हर्फ़-ओ-ज़बाँ का बे-ख़बर होना