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ग़ज़ल
ग़ैर से नफ़रत जो पा ली ख़र्च ख़ुद पर हो गई
जितने हम थे हम ने ख़ुद को उस से आधा कर लिया
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
कभी बड़ा सा हाथ-ख़र्च थे कभी हथेली की सूजन
मेरे मन का आधा साहस आधा डर थे बाबू जी
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
ज़ेहन मिरा आज़ाद है लेकिन दिल का दिल मुट्ठी में
आधा उस ने क़ैद रखा है आधा छोड़ दिया है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
ख़्वाहिशें इतनी बढ़ीं इंसान आधा रह गया
ख़्वाब जो देखा नहीं वो भी अधूरा रह गया
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
डार से बिछड़ा हुआ कबूतर शाख़ से टूटा हुआ गुलाब
आधा धूप का सरमाया है आधी दौलत छाँव की
जमाल एहसानी
ग़ज़ल
अभी वो कमसिन उभर रहा है अभी है उस पर शबाब आधा
अभी जिगर में ख़लिश है आधी अभी है मुझ पर इताब आधा