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ग़ज़ल
जाने किस के मुंतज़िर बैठे हैं झाड़ू फेर कर
दिल से हर ख़्वाहिश को 'आदिल' हम ने चलता कर दिया
आदिल मंसूरी
ग़ज़ल
पैरों को तो दश्त भी कम है सर को दश्त-नवर्दी भी
'आदिल' हम से चादर जितनी फैल सकी फैला ली है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
ग़ज़ल
उसे तुम से मोहब्बत है ग़लत-फ़हमी में मत रहना
ये बस दिल की शरारत है ग़लत-फ़हमी में मत रहना
आदिल राही
ग़ज़ल
हम सा हो तो सामने आए आदिल और इंसाफ़-पसंद
दुश्मन को भी ख़ून रुलाया यारों से भी यारी की
आमिर अमीर
ग़ज़ल
सो लेने दो अपना अपना काम करो चुप हो जाओ
दरवाज़ो कुछ वक़्त गुज़ारो दीवारो चुप हो जाओ
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
ग़ज़ल
ख़्वाहिशों का ख़म्याज़ा ख़्वाब क्यूँ भरें 'आदिल'
आज मेरी आँखों से रत-जगा अलग रखना