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ग़ज़ल
तुम्हारे नाम पर मैं ने हर आफ़त सर पे रक्खी थी
नज़र शो'लों पे रक्खी थी ज़बाँ पत्थर पे रक्खी थी
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
क्या यार की बद-ख़़ूई क्या ग़ैर की बद-ख़्वाही
सरमाया-ए-सद-आफ़त है दिल ही का आ जाना
मीर मेहदी मजरूह
ग़ज़ल
गिरते ख़ेमे जलती तनाबें आग का दरिया ख़ून की नहर
ऐसे मुनज़्ज़म मंसूबों को दूँ कैसे आफ़ात के नाम
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
वो गाए तो आफ़त लाए है हर ताल में लेवे जान निकाल
नाच उस का उठाए सौ फ़ित्ने घुँगरू की झनक फिर वैसी ही