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ग़ज़ल
रब्त-ए-तरतीब की इक शक्ल है जैसे कि 'ज़मान'
नींद को ख़्वाब से है ख़्वाब को ता'बीर से है
दानियाल ज़मान
ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
शैख़-ए-ज़माँ क़दीम रविश के बुज़ुर्ग हैं
कितना बड़ा है गुम्बद-ए-दस्तार देखना
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
क्या पान की सुर्ख़ी ने किया क़त्ल किसी को
शिद्दत से है क्यूँ आज तिरी तेग़-ए-ज़बाँ सुर्ख़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
'अबस है फ़ख़्र ऐ दिल तजरबों की आज़माइश पर
अभी फ़र्दा के इंसानों की ख़ातिर हैं ज़माँ बाक़ी
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
कहूँ क्या ख़ूबी-ए-औज़ा-ए-अब्ना-ए-ज़माँ 'ग़ालिब'
बदी की उस ने जिस से हम ने की थी बार-हा नेकी