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ग़ज़ल
छुपाया हुस्न को अपने कलीम-उल्लाह से जिस ने
वही नाज़-आफ़रीं है जल्वा-पैरा नाज़नीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
'उज़्र-आफ़रीन-ए-जुर्म-ए-मोहब्बत है हुस्न-ए-दोस्त
महशर में 'उज़्र-ए-ताज़ा न पैदा करे कोई
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ये उन के हुस्न को है सूरत-आफ़रीं से गिला
ग़ज़ब में डाल दिया ला-जवाब कर के मुझे
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
यूँही किसी के ध्यान में अपने आप में गाती दो-पहरें
नर्म गुलाबी जाड़ों वाली बाल सुखाती दो-पहरें