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ग़ज़ल
किरन फूटी उफ़ुक़ पर आफ़्ताब-ए-सुब्ह-ए-महशर की
सुनाए जाओ अपनी दास्तान-ए-ज़िंदगी कब तक
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
मैं कई सदियों से गुम हूँ ख़्वाब के सकरात में
आफ़्ताब-ए-सुब्ह-ए-बेदारी मिरे सर पर निकल
सुलतान रशक
ग़ज़ल
है सवा नेज़े पे उस के क़ामत-ए-नौ-ख़ेज़ से
आफ़्ताब-ए-सुब्ह-ए-महशर है गुल-ए-दस्तार-ए-दोस्त
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मज़ा तो जब है कि वो आफ़्ताब-ए-सुब्ह-ए-जमाल
गले लिपट के सर-ए-शाम-ए-इंतिज़ार मिले