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ग़ज़ल
रुख़-ए-महताब से कुछ भी अयाँ होता रहे लेकिन
ये कारोबार-ए-दुनिया सिर्फ़ अय्यारी से क़ाएम है
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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रुख़-ए-महताब से कुछ भी अयाँ होता रहे लेकिन
ये कारोबार-ए-दुनिया सिर्फ़ अय्यारी से क़ाएम है