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ग़ज़ल
मिरी शाम गुल-बदामाँ मिरी शब शब-ए-चराग़ाँ
तिरे दम क़दम से क्या क्या है फ़रोग़-ए-आह-ए-सोज़ाँ
ज़ैन रामिश
ग़ज़ल
लगा दी आतिश-ए-ख़ामोश क्या सोज़-ए-मोहब्बत ने
इलाही ख़ैर दूद-ए-आह-ए-सोज़ाँ दिल से उठता है
शेर सिंह नाज़ देहलवी
ग़ज़ल
पस-ए-साहिल तमाशा क्या है बढ़ कर देख लेना था
कि पहले फेंक कर दरिया में पत्थर देख लेना था
आह संभली
ग़ज़ल
'शफ़ीक़' ज़ब्त किया ऐसा आह-ए-सोज़ाँ को
जिगर से अब मिरे उठने लगा धुआँ सय्याद
सय्यद अहमद हुसैन शफ़ीक़ लखनवी
ग़ज़ल
नशेमन फूँक कर ख़ुश हैं चराग़ाँ देखने वाले
लपट में आह-ए-सोज़ाँ की गुलिस्ताँ देखने वाले
अनवर सादिक़ी
ग़ज़ल
आह-ए-सोज़ाँ हो अगर शो'ला-फ़गन पानी में
आग किस तरह से पैदा हो जलन पानी में
राजा गिरधारी प्रसाद बाक़ी
ग़ज़ल
निकल ही जाए न दम अपना आह-ए-सोज़ाँ से
ज़बाँ पे लफ़्ज़ तो रख इस तरह न तेवर खींच