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ग़ज़ल
बस-कि रोका मैं ने और सीने में उभरीं पै-ब-पै
मेरी आहें बख़िया-ए-चाक-ए-गरेबाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तिरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएँ
वही आँसू वही आहें वही ग़म है जिधर जाएँ
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
महबस में कुछ हब्स है और ज़ंजीर का आहन चुभता है
फिर सोचो हाँ फिर सोचो हाँ फिर सोचो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
ये रुके रुके से आँसू ये दबी दबी सी आहें
यूँही कब तलक ख़ुदाया ग़म-ए-ज़िंदगी निबाहें
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
चुप चुप रहना आहें भरना कुछ भी न कहना लोगों से
तन्हा तन्हा अश्क बहाना हम को अच्छा लगता था
कृष्ण अदीब
ग़ज़ल
प्यार किया तो डरना क्या जब प्यार किया तो डरना क्या
प्यार किया कोई चोरी नहीं की छुप छुप आहें भरना क्या
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
फ़लक की सम्त किस हसरत से तकते हैं मआ'ज़-अल्लाह
ये नाले ना-रसा हो कर ये आहें बे-असर हो कर